ऐसा क्यों मां

कहती नही तू कुछ हमसे, सब अकेले सह जाती हो
बच्चों की फिक्र है तुम्हे, खुद तो बिन खाए रह जाती हो..
आंखो में आंसुओं को लिए, ना जाने कैसे मुस्कुराती हो
रो नही पाती तुम आजकल, ना जानें क्यों हिचकिचाती हो…

मां तुम्हें भी हक़ है खुलकर अपना दिल हल्का करो
हम हैं ना साथ तुम्हारे ,फिर क्यों इतना घबराती हो.
वक्त के साथ सब ठीक होगा, तुम हमें भी तो समझाती हो
बस तू वैसे ही हिम्मत रखना, जैसे तुम हमे सिखाती हो…

समझते हैं हम भी मां, कि अब पैर लडखड़ाते है
कदम बढ़ाने चलो तो वो बीते पल याद आते है…
पर किसके लिए मां, अब तुम इतना टकराती हो
वो जो छोड़ गए थे लोग हमें उनकी क्यों सुनती जाती हो.

गम के भरे गुब्बारे को अब बाहर निकाल फेंको तुम
छोटी सी बातों को लेकर क्यों अक्सर बैठ जाती हो…
और फिर कहती नही तू कुछ हमसे सब अकेले ही सह जाती हो ।

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